Shree Hanuman Chalisa
March 1, 2024•563 words
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपध्यै ।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयुथमुख्यं श्रीराम-दूतं शरणं प्रपध्यै ।।
।। दोहा ।।
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार ।।
।। चौपाई ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।।
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवनसुत नामा ।।
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन बिराज सुवेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ।।
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ।।
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ।।
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा । विकट रुप धरि लंक जरावा ।।
भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र जी के काज संवारे ।।
लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बडाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनो लोक हांक ते कांपै ।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
संकट ते हनुमान छुडावै । मन-क्रम-बचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस वर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जै जै जै हनुमान गोसाई । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहिं बंदि महासुख होई ।।
जो यह पढै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ।।
।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
।। सियावर रामचन्द्र की जय ।।
।। पवनसुत हनुमान की जय ।।
।। उमापति महादेव की जय ।।
।। बोलो रे भाई सब संतन की जय ।।